
मथुरा के संत प्रेमानंद जी महाराज के निवास स्थान से सत्संग स्थल तक जाने वाला मुख्य मार्ग रोज़ाना हजारों श्रद्धालुओं की आवाजाही देखता है। लेकिन इसी मार्ग पर सालों से शराब की दुकानें संचालित हो रही थीं—एक ऐसा दृश्य, जो भक्तों को कभी रास नहीं आया।
स्थानीय लोग कई बार शिकायत भी करते रहे, पर आवाज़ इतनी धीमी थी कि प्रशासन तक पहुंचते-पहुंचते ही खो जाती थी।
स्थानीय शिकायतें—‘हम बोले, लेकिन सुना किसने?’
ब्रज के कई लोगों ने समय-समय पर आपत्ति दर्ज कराई, मगर जो फैसले “VIP रफ्तार” से होते हैं, इस मुद्दे ने शायद “स्लो प्रोसेसिंग” का सब्सक्रिप्शन ले रखा था। प्रभावशाली लोग चुप रहे, प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया… और शराब की दुकानें भक्ति मार्ग की स्थायी सजावट बनकर रह गईं।
एंट्री सनातनी युवाओं की—और कहानी बदल गई
दिल्ली के रहने वाले धीरेन्द्र शास्त्री जी से प्रेरित कुछ सनातनी युवाओं ने अब मोर्चा संभाला। उन्होंने साफ कहा, “संतों के मार्ग पर शराब की दुकानें? ये तो वर्षों पहले हट जानी चाहिए थीं!”
इन युवाओं का तर्क भी सीधा, यह रास्ता धार्मिक भावना से जुड़ा है। प्रतिदिन हजारों भक्त गुजरते हैं और ऐसे मार्ग पर शराब की बिक्री धार्मिक सम्मान के खिलाफ है।
उनकी आवाज़ इस बार इतनी बुलंद थी कि मामला सीधे प्रशासन की टेबल तक पहुंच गया।

युवाओं का उद्देश्य क्या?—‘किसी पर हमला नहीं, सिर्फ मर्यादा की रक्षा’
युवाओं का कहना है कि उनका लक्ष्य किसी व्यवसाय या व्यक्ति को निशाना बनाना नहीं है। उनकी प्राथमिकता केवल एक है— धार्मिक स्थल की गरिमा को बनाए रखना। अब देखना यह है कि प्रशासन कब और क्या निर्णय लेता है।
बड़ा सवाल—स्थानीय लोगों ने पहले कदम क्यों नहीं उठाया?
यह भी चर्चा का विषय बना हुआ है कि अगर स्थानीय लोग पहले संगठित होते, तो शायद यह समस्या वर्षों पहले खत्म हो चुकी होती। लेकिन कहा जाता है— “सही समय पर सही आवाज़—सबसे बड़ा बदलाव!”
शराब से ज्यादा ज़रूरी है मर्यादा
प्रेमानंद जी महाराज के मार्ग पर शराब दुकानों का मुद्दा सिर्फ दुकान हटाने का नहीं, बल्कि धार्मिक भावनाओं और सामाजिक मर्यादा का प्रतीक बन गया है। अब पूरा ब्रज इंतजार कर रहा है कि प्रशासन की ओर से अंतिम निर्णय कब आएगा।
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